पीएम मोदी और जिनपिंग के बीच 5 साल बाद मुलाकात, अमेरिका को कैसे मिलेगी चुनौती
रूस के कजान शहर में BRICS समिट हो रही है. इस बार की समिट कई मायनों में खास है. एक बड़ी वजह तो ये है कि BRICS अब पांच देशों का संगठन नहीं रह गया है. अब 10 देश इसके सदस्य बन गए हैं. दूसरी वजह ये है कि इस समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से द्विपक्षीय बातचीत भी की.
कुछ सालों में BRICS दुनिया के सबसे ताकतवर संगठन के रूप में उभरा है. दिलचस्प बात ये है कि तीन दर्जन से ज्यादा देश ऐसे हैं, जो BRICS में शामिल होना चाहते हैं. ये वो देश हैं, जो अब तक न तो अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ थे और न ही रूस-चीन के साथ.
लेकिन अब दुनिया के कई देश अमेरिका और पश्चिमी देशों की बजाय BRICS के साथ आना चाहते हैं. वो इसलिए भी क्योंकि ये देश BRICS को पश्चिमी देशों के प्रभुत्व वाले वैश्विक संगठनों के विकल्प के रूप में देखते हैं. अमेरिका का विरोध भी कई देशों को BRICS के करीब आने पर मजबूर करता है. लेकिन बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि क्या BRICS से एक नया ‘वर्ल्ड ऑर्डर’ तैयार हो रहा है?
इसे रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के बयान से भी समझा जा सकता है. BRICS समिट से एक दिन पहले लावरोव ने कहा था कि 1990 के दशक में भारत-रूस और चीन की तिकड़ी में नियमित बैठकें शुरू हुई थीं. बाद में इसी तिकड़ी से BRICS बना. उन्होंने ये भी कहा कि दुनिया की ताकत एशिया की तरफ शिफ्ट हो रही है.
BRIC, BRICS और अब BRICS+
साल 2006 में BRIC देशों की पहली बैठक हुई. BRIC में ब्राजील, रूस, भारत और चीन थे. 2009 में BRIC देशों की पहली शिखर स्तर की बैठक हुई. 2010 में इस संगठन में साउथ अफ्रीका भी शामिल हो गया और संगठन का नाम BRIC से BRICS हो गया.
पिछले साल ही BRICS में पांच नए देशों की एंट्री हुई है. ये देश हैं- सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), ईरान, मिस्र और इथियोपिया. इनके आने के बाद अब ये BRICS+ के नाम से जाना जाता है.
अब भी दुनिया के कई देश BRICS से जुड़ना चाहते हैं. पिछले साल जिन नए देशों की एंट्री इसमें हुई है, उसके पीछे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का दिमाग माना जाता है. जिनपिंग को उम्मीद है कि BRICS जितना बढ़ेगा, अमेरिका और पश्चिमी देशों का दबदबा उतना ही कम होगा.
BRICS कैसे बदल रहा वर्ल्ड ऑर्डर?
BRICS से जुड़ने की इच्छा जताने वाले ज्यादातर मुल्क पश्चिम विरोधी हैं. इनके दो मकसद हैं. पहला- पश्चिमी देशों के प्रभुत्व को कमजोर करना. और दूसरा- कारोबार में अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को कम करना.
पहले रूस-यूक्रेन जंग और फिर इजरायल-हमास में संघर्ष ने दुनिया को दो धड़ों में बांट दिया है. एक धड़ा अमेरिका का है और दूसरा रूस और चीन का.
BRICS के विस्तार का सबसे ज्यादा समर्थन रूस और चीन करते हैं. यही वो दो देश हैं जो अमेरिका और पश्चिमी देशों के विरोधी हैं. यूक्रेन से जंग के कारण रूस प्रतिबंधों की वजह से पश्चिमी देशों से चिढ़ा बैठा है. तो वहीं चीन खुद को ताकतवर बनाने के लिए छोटे-छोटे देशों को अपने साथ लाने में जुटा है.
इतना ही नहीं, BRICS में शामिल हुए तीन नए देश- सऊदी अरब, ईरान और यूएई तेल और गैस के बड़े उत्पादक हैं. अमेरिकी प्रतिबंधों से जूझ रहा ईरान नए कारोबारी दोस्त भी तलाश रहा है. ये लोग अमेरिका और पश्चिमी देशों पर अपनी निर्भरता कम से कम करना चाहते हैं.
अमेरिका को कैसे मिलेगी चुनौती?
BRICS के पांच संस्थापक सदस्यों की सोच कभी एक नहीं रही. रूस और चीन ने खुद को अमेरिका और पश्चिमी देशों का विरोधी बनाकर रखा तो चीन के विरोध में भारत की करीबियां अमेरिका से बढ़ती रहीं. ब्राजील और साउथ अफ्रीका भी खुद को अमेरिका के ज्यादा करीब रखते हैं.
हालांकि, अब BRICS के सदस्यों की संख्या बढ़ने से इसमें ज्यादातर अमेरिका विरोधी हो गए हैं. अमेरिका के और भी विरोधी BRICS से जुड़ना चाहते हैं.
रूस और चीन इसलिए भी BRICS का विस्तार चाहते हैं, ताकि अमेरिकी प्रतिबंधों का जवाब दिया जा सके. सऊदी अरब, ईरान और यूएई के आने से BRICS की ताकत पहले से कहीं ज्यादा बढ़ी है. अगर भविष्य में अमेरिका BRICS के किसी देश पर प्रतिबंध लगाता है तो सदस्य देशों से कारोबार करने में मुश्किलें नहीं आएंगी.
दूसरी सबसे बड़ी चुनौती डॉलर के दबदबे को कम करना है. दुनिया में 90 फीसदी से ज्यादा कारोबार अमेरिकी डॉलर में ही होता है. 40 फीसदी कर्ज भी डॉलर में ही दिए जाते हैं. जबकि, रूस और चीन ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देश अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करना चाहते हैं. ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा ने एक बार कहा था कि उन्हें अमेरिकी डॉलर में कारोबार करने को लेकर बुरे सपने आते हैं.
इतना ही नहीं, BRICS देश अमेरिका के प्रभुत्व वाले वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ पर भी निर्भरता कम करना चाहते हैं. 2014 में BRICS देशों ने वर्ल्ड बैंक का मुकाबला करने के लिए न्यू डेवलपमेंट बैंक शुरू किया था. अब तक इस बैंक ने 30 अरब डॉलर से ज्यादा का कर्ज दिया है.
BRICS देशों का मानना है कि अगर डॉलर पर निर्भरता कम करनी है तो हमें अपनी करंसी पर कारोबार करना होगा. रूस और चीन ने कई देशों के साथ इसे लेकर डील भी की है. दुनिया के कई देशों के साथ चीन अपनी करंसी युआन में कारोबार करता है.
क्या G-7 का मुकाबला कर पाएगा BRICS?
अब BRICS में कुल 10 देश हैं. इतना ही नहीं, BRICS देशों की जीडीपी G-7 देशों से भी दोगुनी से ज्यादा है. G-7 दुनिया की सात सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का संगठन है, जिसमें अमेरिका, यूके, जापान, इटली, जर्मनी, फ्रांस और कनाडा शामिल हैं.
दुनिया के 9 सबसे बड़े तेल उत्पादकों में से 6 BRICS के सदस्य हैं. इनमें सऊदी अरब, रूस, चीन, ब्राजील, ईरान और यूएई है. इसका मतलब ये हुआ कि तेल मार्केट पर इनका दबदबा हो गया है. दुनिया का 43 फीसदी से ज्यादा तेल का उत्पादन इन्हीं देशों में होता है.
BRICS देशों का आर्थिक प्रभाव भी बढ़ रहा है. सोमवार को मॉस्को में BRICS बिजनेस फोरम में रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने बताया था कि BRICS देशों की जीडीपी 60 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा हो गई है, जो G-7 के देशों से कहीं ज्यादा है.
पुतिन ने कहा कि 1992 के बाद से वैश्विक अर्थव्यवस्था तेजी से बदली है. 1992 में ग्लोबल जीडीपी में G-7 देशों की हिस्सेदारी 45.5% थी, जबकि BRICS के देशों का हिस्सा 16.7% था. लेकिन 2023 तक G-7 की हिस्सेदारी 29.3% और BRICS के सदस्यों की हिस्सेदारी 37.4% हो गई.
उन्होंने ये भी कहा कि ग्लोबल जीडीपी की ग्रोथ में BRICS देश 40% का योगदान देते हैं. BRICS देशों की ग्रोथ रेट इस साल 4% रहने का अनुमान है. इसके अलावा, ग्लोबल ट्रेड में 25% एक्सपोर्ट BRICS देशों से ही होता है.
अगर BRICS में ज्यादा से ज्यादा देश जुड़ते हैं तो उनके बीच अपनी करेंसी में कारोबार करने पर सहमति बन सकती है. ऐसा होता है तो सीधे-सीधे अमेरिका की करेंसी डॉलर कमजोर हो जाएगी. ऐसा चीन और रूस ही नहीं, कई देश चाहते हैं
Check all Updates Very First in JKUpdates App – Install Now
J&K Bank Jobs, Fresh Recruitment, Apply Now
Social Welfare Department J&K Recruitment